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जिह्वा रानी (दोहे)


जिह्वा रानी  (दोहे)


आग लगे उस जीभ पर , जो दे चोर बनाय।

अपने तो मस्ती करे, चोर लात बहु खाय।।


जिह्वा पर संयम नहीं, मन स्वच्छंद अधीर।

बहता जाता देह नित,जिमि मटमैला नीर।।


जो जिह्वा विष बो रही,उस जिह्वा को काट।

जिससे अमृत बरसता, उस जिह्वा को चाट।।


जिह्वा सुंदर सुघर हो, रूपसि होय अपार।

बोले घूँघट से सहज, लगे दे रही प्यार।।


जिह्वा अति मदमस्त हो, करे मनुज को मस्त।

प्रेम-सूर्य का उदय हो, घृणा होय अब अस्त।।


जिस जिह्वा पर शारदा, मैया दिव्य सवार।

उस जिह्वा में है छिपा, सात्विक प्रेम अपार।।


सब कुछ दुर्लभ-सुलभ है,यह जिह्वा का खेल।

जिह्वा से विद्रोह है, जिह्वा से ही मेल।।


इस सम्पूर्ण शरीर में, जिह्वा है अनमोल।

जिह्वा को आगे रखो, बोलो मोहक बोल।।


जिह्वा से आनंद लो, जिह्वा से कर काम।

जिह्वा रानी नित जपे,राम राम श्री राम।।


जिह्वा सज-धज कर चले, इसको रानी जान ।

रानी से टपके सतत,सरस मधुर रस ज्ञान।।


जिह्वा सबसे प्रेम कर,चले हंसिनी चाल।

मीठे शब्दोच्चार से,जग में करे कमाल।।


जिह्वा पर ही खोज हो, जिह्वा पर संधान।

जिह्वा से ही प्रेम कर, इसे प्रेमिका मान।।


जिह्वा से झर-झर बहे, प्रेम सिंधु का ग्रन्थ।

प्रेमी जिह्वा से निकल ,दिखे मधुर शिव पन्थ।।


जिह्वा से संवाद कर, सकल विश्व को मोह।

परम प्रेमिका अनुपमा, करे सभी से छोह।।





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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:59 PM

👍👍🌺

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